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भगवद्गीता की सायकोलॉजी पर एक अभूतपूर्व व्याख्या
युद्ध प्रारंभ होने से ठीक पहले अर्जुन कृष्ण से कहता है कि राज्य पाने के लिए ना तो मैं भाइयों को मारना चाहता हूँ और ना ही कोई हिंसा करना चाहता हूँ। धर्मशास्त्र भी इसकी अनुमति नहीं देते।
– क्या आप अर्जुन की बातों से सहमत हैं?
– तो फिर कृष्ण अर्जुन की बातों से सहमत क्यों नहीं हुए?
– कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध हेतु उकसाया या उसे सही मार्ग दिखाया?
– क्या युद्ध और हिंसा करने के भी जायज कारण हो सकते हैं?
– सही कौन है? कृष्ण या अर्जुन?
– कृष्ण को गीता अठारह अध्याय तक क्यों कहनी पड़ी?
वाकई गीता एक है व सवाल अनेक हैं… । वैसे ही जीवन भी एक है तथा सवाल अनेक हैं। और इन तमाम सवालों के जवाब सिर्फ गीता दे सकती है। क्योंकि कृष्ण मनुष्यजाति के पहले ”सायकोलॉजिस्ट” हैं तथा “स्पीरिच्युअल सायकोलॉजी” ही मन व जीवन के सारे सवालों के सटीक उत्तर दे सकती है। लेकिन बावजूद इसके गीता के सायकोलॉजिकल पहलुओं की हमेशा अनदेखी करी गई है।
मैं गीता हूँ, भगवद्गीता की पहली ऐसी व्याख्या है जो समस्त 700 श्लोकों के ना सिर्फ “स्पीरिच्युअल” बल्कि संपूर्ण “सायकोलॉजिकल सार” को समझाती है। फर्स्ट पर्सन में लिखी इस गीता में अर्जुन सवाल भी “मैं” से पूछता है तथा कृष्ण जवाब भी “मैं” से ही देते हैं। इससे ऐसा लगता है मानो हम गीता का सार एक खूबसूरत कहानी के रूप में कृष्ण व अर्जुन से “लाइव” समझ रहे हैं। दीप त्रिवेदी मैं कृष्ण हूँ, मैं मन हूँ तथा सबकुछ सायकोलॉजी है जैसी अनेक बेस्टसेलिंग किताबों के लेखक हैं। भगवद्गीता पर 168 घंटे तक वर्कशॉप्स कंडक्ट करने का अंतर्राष्ट्रीय रेकॉर्ड उनके नाम दर्ज है। भगवद्गीता की सायकोलॉजी पर किये कार्यों के लिए ऑनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित दीप त्रिवेदी द्वारा सरल भाषा में लिखी इस किताब के जरिए हर उम्र का व्यक्ति भगवद्गीता का पूरा सार यकीनन बड़ी आसानी से ग्रहण कर लेगा।
यह किताब अंग्रेजी, हिंदी, मराठी और गुजराती में सभी प्रमुख बुक स्टोर्स और ई-कॉमर्स साइट्स पर उपलब्ध है।